ये कुछ लोग

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ये कुछ लोग…

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तुम्हारे बाद बढ़ गये हैं 

घर में ये कुछ लोग …

हमेशा के लिये ठहर गये हैं 

घर में ये कुछ लोग …

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ग़म तन्हाई यादें हैं नाम इनका…

मेरी रसोई से बिस्तर तक पसर गये हैं 

ये कुछ लोग …

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कुछ सोचने नहीं देते 

कुछ लिखने नहीं देते 

सोते से जगा देते हैं 

ज़हन के अंधेरे तहख़ाने में 

घुस कर शोर मचाते हैं 

बच्चों की तरह तंग कर देते हैं 

जब सजाने की कोशिश करता हूँ 

अपनी दिल की दिवारों को रंगों से 

ये शैतान सब रंग चुरा कर 

मुझे फिर से बेरंग कर देते हैं 

बड़ा हैरान करते हैं

बहुत परेशान करते हैं 

तुम थे तो ये हाल ना हुआ था कभी…

तुम्हारे बाद बहुत बिगड़ गये हैं 

ये कुछ लोग …
कहो कुछ भी मगर ईमानदार हैं…

हर जगह हर हाल में 

मेरे साथ खड़े रहने को 

हर वक्त तैयार हैं

मेरे दिन रात 

मेरी ज़ात 

हर जगह उतर गये हैं 

ये कुछ नये लोग…

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धीरज झा…

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